अजीब शख़्स है
अजीब शख़्स है सबसे हँस कर मिलता है ।
फितरत है सबकी उजालों में चमकने की,
अंधेरों में जलने का हुनर कम में मिलता है ।
बाग़ खिल उठता है सावन की एक छुअन से,
पतझड़ में खिलने का हुनर कम में मिलता है ।
बहुत आसां है साथ बह जाना बहाव के साथ,
चीर कर बह जाने का हुनर कम में मिलता है ।
मिल जायेंगे पत्थर बहुत तुमको इन राहों में,
वो पत्थर मील का लेकिन मीलों में मिलता है ।
खंगाल डालो चाहे ये संमदर सारे फिर से तुम,
सच्चा मोती मगर कहाँ हर संमदर से मिलता है ।
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