गुदगुदी
ज़िंदगी है एक गुदगुदी, गुदगुदाकर देख लो,
दर्द कभी बढ़ जाए तो मुस्कराकर देख लो ।
क्या हुआ जो अपने हिस्से में हैं उजाले कम,
रोशनी कम हो तो अंधेरे सजाकर देख लो ।
अक्स तेरा ही है हर ओर जहाँ नज़र जाए,
यकीं न हो तो मुझे आइना बनाकर देख लो ।
उदास क्यों बैठे हो तुम यूँ ज़िंदगी से हार के,
ज़िंदगी को फिर एक बार आजमां के देख लो ।
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